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सांविधानिक विधि

जीवनसाथी चुनने का अधिकार

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 19-Sep-2023

टिप्पणी

किसी व्यक्ति का जीवन साथी चुनने का निर्णय आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है और विवाह करने का अधिकार "मानवीय स्वतंत्रता" की श्रेणी के अंतर्गत आता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय

स्रोतः इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

दिल्ली उच्च न्यायालय (HC) ने माना है कि किसी व्यक्ति का जीवन साथी चुनने का निर्णय आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है और विवाह करने का अधिकार "मानवीय स्वतंत्रता" की श्रेणी के अंतर्गत आता है।

पृष्ठभूमि

  • अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध शादी करने के बाद एक अंतरधार्मिक दंपत्तियों द्वारा एक याचिका दायर की गई थी।
  • दंपत्ति ने कहा कि वे दोनों वयस्क हो गए हैं और जुलाई 2023 में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत उन्होंने शादी कर ली है।
  • इस दंपति ने अधिकारियों से उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिये निर्देश देने की मांग की क्योंकि उन्हें मुख्य रूप से लड़की के परिवार से धमकियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • न्यायालय ने इस याचिका पर गौर किया और निर्देश दिया कि संबंधित पुलिस अधिकारियों का संपर्क नंबर याचिकाकर्त्ताओं को प्रदान किया जाए, जो जरूरत पड़ने पर उनसे संपर्क करने के लिये स्वतंत्र होंगे।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने कहा है कि व्यक्तियों को अपना जीवन साथी चुनने का अंतर्निहित अधिकार है, और न तो राज्य, समाज और न ही व्यक्तियों के माता-पिता को इस अधिकार में हस्तक्षेप करने या प्रतिबंधित करने का अधिकार होना चाहिये जब यह दो वयस्कों की सहमति से संबंधित हो।"
  • उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि "शादी करने का अधिकार मानवीय स्वतंत्रता की श्रेणी में आता है। अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार न केवल मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में रेखांकित किया गया है, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न पहलू भी है जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है
  • उच्च न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि संबंधित एस. एच. ओ. और बीट कांस्टेबल को कानून के अनुसार याचिकाकर्त्ताओं को आवश्यकतानुसार पर्याप्त सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिये हर संभव कदम उठाना चाहिये।

विवाह का अधिकार

संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 21 अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा - विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • भारत में विवाहों को नियंत्रित करने वाले कुछ कानूनों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया जा सकता है:
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954
    • भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872
    • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
    • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006

केस कानून

  • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006): यह मामला विवाह और अंतर-जातीय विवाह के अधिकार से संबंधित है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने माना कि चूँकि याचिकाकर्त्ता बालिग थी, इसलिये उसे अपनी इच्छानुसार किसी से भी विवाह करने का अधिकार है। अंतरजातीय विवाह पर रोक लगाने वाला कोई क़ानून नहीं है।
  • शफीन जहाँ बनाम अशोकन के. एम. और अन्य (2018)
    • इसे हादिया केस या लव-जिहाद केस के नाम से जाना जाता है ।
    • वर्तमान मामले में अखिला नाम की एक हिंदू लड़की ने एक मुस्लिम लड़के से शादी करने के लिये इस्लाम धर्म अपना लिया (जिसे अब हादिया कहा जाता है)। उस वक्त वह लड़की 25 साल की थी।
    • उनके पिता ने संविधान के अनुच्छेद 226 का इस्तेमाल करते हुए केरल उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका शुरू की ।
    • उनका तर्क था कि उन्हें धार्मिक चरमपंथियों द्वारा प्रभावित या हेरफेर का शिकार बनाया गया था।
    • केरल उच्च न्यायालय ने इस शादी को रद्द कर दिया था।
    • हदिया के पति ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण के लिये एक याचिका पर विचार करते समय विवाह को शून्य घोषित करने के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग, स्पष्ट रूप से न्यायिक शक्ति से अधिक है" ने उसकी शादी को वैध माना।
    • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि "अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है और हमारे जीवनसाथी की पसंद का निर्धारण करने में समाज की कोई भूमिका नहीं है"।